- दूसरे चरण में 3 नवंबर को विधानसभा की 94 सीटों के लिए होगा मतदान
- लोजपा और जदयू के लिए है बड़ी चुनौती, भाजपा और राजद को घर बचाने की कोशिश
पोलटॉक के लिए सच्चिदानंद सच्चू की ग्राउंड रिपोर्ट
बिहार विधानसभा के दूसरे चरण का मतदान 3 नवंबर को है. जिसमें विधानसभा की 94 सीटों के लिए मतदान किया जायेगा. इन सीटों पर यूं तो मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच दिख रहा है. लेकिन जहां एनडीए की ओर से जदयू प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, वहां लोजपा प्रत्याशी भी ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं. ऐसे में इन सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है. जहां–जहां जदयू के विरोध में लोजपा प्रत्याशी हैं वहां संघर्ष त्रिकोणात्मक जरूर नजर आ रहा है . लेकिन मतदाताओं के मन में जदयू के प्रति आक्रोश भी अभी तक दिख रहा है. लिहाजा इन सीटों पर जदयू को काफी नुकसान हो सकता है. हं, जिन सीटों पर भाजपा उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं, हो सकता है उन सीटों पर भाजपा फायदे में रहे. इन 94 सीटों पर पिछली बार के चुनाव में लगभग एक तिहाई सीटें राजद के खाते में गयी थीं. राजद को जदयू के वोट बैंक का भी लाभ मिला था. इस चुनाव में जदयू का वोट बैंक खिसकता हुआ दिख रहा है. जदयू के इस खिसकते हुए जनाधार का लाभ राजद और एलजेपी को भी मिल सकता है.
पिछली बार 22 सीटों पर ही सिमट गयी थी भाजपा
दूसरे चरण में जिन 94 सीटों के लिए चुनाव होना है, उनमें से 33 सीटों पर राजद ने बाजी मारी थी. जबकि जदयू के खाते में 30 सीटें गयी थीं. जबकि भाजपा को महज 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. लेकिन इस बार का चुनावी समीकरण बिलकुल अलग है. पिछली बार जदयू-राजद-कांग्रेस साथ – साथ थे जबकि इस बार जदयू – भाजपा एक साथ हैं. एलजेपी अलग चुनाव लड़ रहा है. उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ने एक अलग गठबंधन बना लिया है. पिछली बार के चुनाव में नीतीश कुमार विकास पुरुष के रूप में विख्यात थे. इसका लाभ राजद-जदयू गगठबंधन को मिला था. इस बार उनकी यह छवि धूमिल हुई है. अंदरखाने भाजपा भी नीतीश की धूमिल होती छवि का लाभ उठाने की कोशिश में है जबकि एलजेपी इस लाभ को उठाने के लिए खुलकर सबके सामने आ गयी है. दूसरी तरफ राजद भी इस लाभ को उठाने के लिए जी – तोड़ कोशिश कर रहा है. तेजस्वी की सभाओं में उमड़ती भीड़ नीतीश से हुए मोहभंग के कारण ही है. यह भीड़ वोट बैंक में बदलती है या नहीं, यह तो वक्त ही बतायेगा.
कहीं सीधा तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबले के हैं आसार
इस चुनाव में राजद ने 56 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. जबकि अन्य सीटों पर कांग्रेस और वामपंथी उम्मीदवार हैं. 27 सीटों पर भाजपा के साथ राजद का सीधा मुकाबला है. जबकि 25 सीटों पर महागठबंधन की लड़ाई जदयू और एलजेपी दोनों से है. भाजपा इस चरण में 46 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि जदयू 43 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. दूसरे चरण में ही राघोपुर और हसनपुर सीट पर भी वोटिंग होनी है. यहां से तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव दोनों अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. राजद के प्रधान महासचिव आलोक कुमार मेहता उजियारपुर से राजद प्रत्याशी हैं. जबकि पूर्व सांसद युवा राजद के अध्यक्ष शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल बिहपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं. वहीं पूर्व सांसद आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद शिवहर सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. पूर्व सांसद रामा सिंह की पत्नी वीणा सिंह वैशाली की महनार सीट से चुनाव मैदान में हैं. अभिनेता और पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा बांकीपुर सीट से अपना भाग्य आजमा रहे हैं.
राजद और एलजेपी उठा सकता है जदयू के खिसकते जनाधार का लाभ
बिहार विधानसभा के दूसरे चरण का मतदान तीन नवंबर को है. तीन नवंबर को विधानसभा की 94 सीटों के लिए मतदान किया जायेगा. इन सीटों पर यूं तो मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच दिख रहा है. लेकिन जहां एनडीए की ओर से जदयू प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, वहां लोजपा प्रत्याशी भी ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं. ऐसे में इन सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है. जहां – जहां जदयू के विरोध में लोजपा प्रत्याशी हैं वहां संघर्ष त्रिकोणात्मक जरूर नजर आ रहा है लेकिन मतदाताओं के मन में जदयू के प्रति आक्रोश भी अभी तक दिख रहा है. लिहाजा इन सीटों पर जदयू को काफी नुकसान हो सकता है. हं, जिन सीटों पर भाजपा उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं, हो सकता है उन सीटों पर भाजपा फायदे में रहे. इन 94 सीटों पर पिछली बार के चुनाव में लगभग एक तिहाई सीटें राजद के खाते में गयी थीं. राजद को जदयू के वोट बैंक का भी लाभ मिला था. इस चुनाव में जदयू का वोट बैंक खिसकता हुआ दिख रहा है. जदयू के इस खिसकते हुए जनाधार का लाभ राजद और एलजेपी को भी मिल सकता है. दूसरे चरण में जिन 94 सीटों के लिए चुनाव होना है, उनमें से 33 सीटों पर राजद ने बाजी मारी थी. जबकि जदयू के खाते में 30 सीटें गयी थीं. जबकि भाजपा को महज 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. लेकिन इस बार का चुनावी समीकरण बिलकुल अलग है. पिछली बार जदयू-राजद-कांग्रेस साथ – साथ थे जबकि इस बार जदयू – भाजपा एक साथ हैं. एलजेपी अलग चुनाव लड़ रहा है. उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ने एक अलग गठबंधन बना लिया है. पिछली बार के चुनाव में नीतीश कुमार विकास पुरुष के रूप में विख्यात थे. इसका लाभ राजद-जदयू गगठबंधन को मिला था. इस बार उनकी यह छवि धूमिल हुई है. अंदरखाने भाजपा भी नीतीश की धूमिल होती छवि का लाभ उठाने की कोशिश में है जबकि एलजेपी इस लाभ को उठाने के लिए खुलकर सबके सामने आ गयी है. दूसरी तरफ राजद भी इस लाभ को उठाने के लिए जी – तोड़ कोशिश कर रहा है. तेजस्वी की सभाओं में उमड़ती भीड़ नीतीश से हुए मोहभंग के कारण ही है. यह भीड़ वोट बैंक में बदलती है या नहीं, यह तो वक्त ही बतायेगा.
दूसरे चरण में होगा कई दिग्गजों के भाग्य का फैसला
इस चुनाव में राजद ने 56 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. जबकि अन्य सीटों पर कांग्रेस और वामपंथी उम्मीदवार हैं. 27 सीटों पर भाजपा के साथ राजद का सीधा मुकाबला है. जबकि 25 सीटों पर महागठबंधन की लड़ाई जदयू और एलजेपी दोनों से है. भाजपा इस चरण में 46 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि जदयू 43 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. दूसरे चरण में ही राघोपुर और हसनपुर सीट पर भी वोटिंग होनी है. यहां से तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव दोनों अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. राजद के प्रधान महासचिव आलोक कुमार मेहता उजियारपुर से राजद प्रत्याशी हैं. जबकि पूर्व सांसद युवा राजद के अध्यक्ष शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल बिहपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं. वहीं पूर्व सांसद आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद शिवहर सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. पूर्व सांसद रामा सिंह की पत्नी वीणा सिंह वैशाली की महनार सीट से चुनाव मैदान में हैं. अभिनेता और पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा बांकीपुर सीट से अपना भाग्य आजमा रहे हैं.
हो रही है एक नयी शुरुआत…
बिहार विधानसभा 2020 में नयी शुरुआत भी देखने को मिल रही है. नीतीश कुमार प्राय: बिहार के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्हें लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. तीन-चार चुनावी सभाओं में जिस तरह उनके खिलाफ लोगों का गुस्सा दिखा, ऐसा गुस्सा बिहार के दूसरे मुख्यमंत्रियों ने शायद ही झेला होगा. दूसरी तरफ इस चुनाव में प्लूरल्स भी अपनी जमीन तलाश करती हुई नजर आ रही है. पढ़े-लिखे युवाओं को पुष्पम प्रिया चौधरी आकर्षित करने लगी हैं. प्लूरल्स इस चुनाव में कोई महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करे या न करे लेकिन एक बदलाव की पृष्ठभूमि बिहार में जरूर तैयार हो रही है. जिसका असर आने वाले दिनों बिहार के साथ – साथ पूरे देश में देखने को मिलेगा.