- वो बिहार से थीं ये ओडिशा से हैं
- वो यूपीए की प्रत्याशी थीं ये एनडीए की
संतोष कुमार पांडेय | नई दिल्ली
देश में राष्ट्रपति (President Election 2022 ) के लिए चुनाव हो रहा है. दोनों तरफ से प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं. एनडीए की द्रौपदी मुर्मू (draupadi murmu) और यूपीए (UPA) के यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) आमने-सामने हैं. फिर एक बार 2017 का चुनाव याद आ रहा है. उस बार यूपीए की तरफ से मीरा कुमार थीं तो सामने थे रामनाथ कोविंद। जीत कोविंद की हुई थीं मीरा की हार. चुनाव लगभग एक तरफ़ा सा हो गया था लेकिन इस बार मामला टफ है. लेकिन इस बार द्रौपदी मुर्मू (draupadi murmu) की स्थिति मीरा कुमार (Meira Kumar) जैसी नहीं है. मीरा कुमार की स्थिति और द्रौपदी मुर्मू में जमीन आसमान का फ़र्क है. इसलिए बताना जरुरी है. बेशक अनुसूचित जाति से थीं लेकिन आर्थिक रूप से अव्वल दर्जे प्रथम होंगी। वहीं द्रौपदी मुर्मू अनुसूचित जनजाति से भले हैं लेकिन आर्थिक रूप से ये मीरा की तुलना में बहुत पीछे हैं. इसलिए आइये जानते है मीरा कुमार और द्रौपदी मुर्मू में क्या है अंतर।
2017 की प्रत्याशी रहीं मीरा कुमार के पिता जगजीवन राम देश के दिग्गज नेता रहे. वो भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे हैं। मीरा कुमार खुद आईएफएस (ifs) अधिकारी रहीं है. वर्ष 1973 में वह भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए चुनी गईं। कुछ वर्षो तक स्पेन, ब्रिटेन और मॉरीशस में उच्चायुक्त रहीं। वे अंग्रेजी, स्पेनिश, हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी भाषाओ में निपुण है।
वे वर्ष 1968 में बिहार की पहली महिला कैबिनेट मंत्री सुमित्रा देवी के बड़े पुत्र मंजुल कुमार से परिणय सूत्र में बंधी। कई बार लोकसभा की सांसद रहीं। केंद्रीय मंत्री भी रहीं हैं। बाद में इन्हे यूपीए की सरकार में लोकसभा अध्यक्ष भी चुना गया था. लेकिन चुनाव हार चुकीं मीरा को 2017 में यूपीए ने राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में उतार दिया था और उनकी हार हुई थीं.
उस चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार कोविंद ने विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को तीन लाख 34 हजार 730 वोट के अंतर से पराजित किया था। कोविंद को 65.65 फीसदी मत मिले जबकि मीरा कुमार को 34.35 फीसदी मत ही मिले थे। 21 सांसदों व 56 विधायकों के वोट अवैध पाए गए। कोविंद के पक्ष में विपक्षी खेमे के कई सांसदों व विधायकों ने भी मत दिया है।
वहीँ एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का बैकग्राउंड बेहद ही सरल रहा है. वो तो चर्चा में तब आई जब उन्हें झारखण्ड का राज्यपाल बनाया गया. कुछ ऐसी हैं मुर्मू की कहानी। ओडिशा स्थित भुवनेश्वर के रमा देवी वुमन्स कॉलेज से ग्रेजुएशन करने वालीं मुर्मू ने अपनी करियर की शुरुआत सभासद पद से की थी।
ओडिशा के रायरंगपुर जिले की नगर पंचायत में वो पहली सभासद चुनी गई थीं। इसके बाद मयूरभंज विधानसभा सीट से दो बार (2000, 2009) विधायक चुनी गईं। इसके साथ ही ओडिशा में बीजेपी और बीजेडी की गठबंधन वाली सरकार में (2000-04 ) मुर्मू मंत्री (वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग) रह चुकी हैं। मीरा और द्रौपदी मुर्मू की पहचान में यही बड़ा अंतर है.