मुसलमानों के लिए रमजान का महीना बाकी सारे महीनों से ज्यादा अहमियत रखता है इस महीने में मुसलमान दिन रात इबादत करते हैं। मुसलमानों की कोशिश होती है कि पूरा महीना नेक कामों में ही गुजरे। हालांकि, इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में है तो मुसलमानों पर भी इसका असर होना लाजमी है। यही वजह है कि रमजान का तकरीबन आधा महीना गुजरने को है और मुसलमानों को हमेशा की तरह इस बार इबादत में वह लुत्फ नहीं मिल रहा है। पढ़िए जौनपुर से खादिम अब्बास रिजवी की रिपोर्ट.
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आमतौर पर रमजान का महीना शुरू होते ही सुन्नी समुदाय की मस्जिदों में तरावीह की विशेष नमाज अदा की जाने लगती है। इसके साथ ही शबीना और इतिकाफ जैसी विशेष इबादत ए भी इस माह में बहुत ज्यादा अंजाम दी जाती हैं। इन नमाजों को अदा करने के लिए नमाजी कई दिनों तक मस्जिदों में ही रहते हैं। वही सुबह सहरी के बाद मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है इसी तरीके से पांच वक्त नमाज का सिलसिला रहता है।
शाम को मस्जिद में एक साथ इकट्ठा होकर लोग इफ्तार करते हैं। लेकिन कोरोनावायरस और उसकी वजह से देश भर में लगे लाकडाउन ने मुसलमान घरों में ही इबादत कर रहे हैं। इस वजह से हर बार की तरह रमजान की रौनक इस बार नजर नहीं आ रही है। मस्जिदों में होने वाली विशेष नमाज तरावीह नहीं हो रही है। वही सारी मस्जिदों में सामूहिक नमा जें भी स्थगित कर दी गई हैं। जुमे की नमाज भी मस्जिदों में अदा नहीं की जा रही है। शिया सुन्नी दोनों समुदाय के लोगों ने लाक डाउन में प्रशासन का पूरा सहयोग किया है।
शिया समुदाय के लोग नहीं उठाएंगे जुलूस न करेंगे मजलिस
अगर बसिया समुदाय की की जाए तो इस बार लॉकडाउन (LOCKDOWN KI NEWS) की वजह से शिया समुदाय के लोगों ने तय किया है कि हजरत अली की शहादत पर रमजान की 18 से 21 तक होने वाले तमाम जुलूसों को वह नहीं उठाएंगे। साथ ही इस दौरान होने वाली मजलिसे भी नहीं होंगी महिलाएं घरों में भी मजलिस नहीं करेंगी।
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जौनपुर में शिया मरकरी मोहर्रम कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट शहंशाह हुसैन ने बताया कि इस बार हजरत अली शहादत पर कोई भी जुलूस मजलिस नहीं होगी।
हाफ़िज़ मोहम्मद सलीम क़ादरी ने कहा कि इस वर्ष मस्जिदों में न तो तरावीह हो रही है, न ही दूसरी कोई इबादत। कोरो ना की वजह से रमज़ान की इबादतें वैसे नहीं हो पा रही जैसे करनी चाहिए।