पीएम बनते-बनते रह गये थे प्रणब दा ! बना लिए थे अलग दल ! बाद में राष्ट्रपति बने ! बड़ी रोचक है कहानी !

भारत की राजनीति में इंदिरा गान्धी का दौर अब तक का सबसे चर्चित माना जाता है. इस दौरान जो भी सरकार में रहा या इंदिरा का करीबी रहा उसे शक्तिशाली और कांग्रेस में राजनीतिक तौर पर योध्या के रूप में देखा जाता रहा है. इसी कड़ी में एक नाम है. जो देश के राष्ट्रपति भी रहे. भारत रत्न भी हैं. जिनका नाम है प्रणब मुखर्जी यानी प्रणब दा. प्रणब दा एक बार पीएम बनते-बनते रह गये थे.

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प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति, भारत
प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति, भारत .

  • 84 साल की उम्र में प्रणब बने रहे ख़ास, कई मंत्रालयों का सफल रूप से जिम्मा संभाल चुके हैं
  • पश्चिम बंगाल की जंगीपुर लोकसभा सीट से जीतते रहे चुनाव

संतोष कुमार पाण्डेय | सम्पादक

भारत की राजनीति में इंदिरा गान्धी का दौर अब तक का सबसे चर्चित माना जाता है. इस दौरान जो भी सरकार में रहा या इंदिरा का करीबी रहा उसे शक्तिशाली और कांग्रेस में राजनीतिक तौर पर योध्या के रूप में देखा जाता रहा है. इसी कड़ी में एक नाम है. जो देश के राष्ट्रपति भी रहे. भारत रत्न भी हैं. जिनका नाम है प्रणब मुखर्जी यानी प्रणब दा. प्रणब दा एक बार पीएम बनते-बनते रह गये थे.

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उन्हें उसी समय कांग्रेस की राजनीति में हाशिये पर डाल दिया गया. फिर उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी बना लिया था. लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने अपने दल का विलय कांग्रेस में कर दिया और फिर उनका समय लौट आया. आइये जानते पूरी कहानी क्या थी ? प्रणब दा के पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय थे. पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य और वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे. इसलिए प्रणब को कांग्रेस में राजनीती करना थोड़ी आसान रही. वर्ष 1969 में प्रणब मुखर्जी राज्यसभा के सदस्य बने .

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फिर लगातार 1975, 1981, 1993 और 1999 तक राज्यसभा के लिए चुने गये. वर्ष 2004-2009 में इन्होने पश्चिम बंगाल की जंगीपुरा लोकसभा सीट से चुनाव जीता. वर्ष 2012 में प्रणब दा देश के राष्ट्रपति बने. इसके पहले प्रणब दा रक्षामंत्री, वित्तमंत्री, विदेश मंत्री, गृह मंत्री भी रह चुके थे. आइये जानते इन्हें कब पीएम बनने का अवसर लगभग-लगभग मिल चुका था.

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वर्ष 1984 में जब इंदिरा गाँधी की हत्या हुई उस दौरान प्रणब दा मुखर्जी देश के गृह मंत्री थे. एक बार संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बताया था कि जब इंदिरा गाँधी के हत्या की खबर आई तो उस समय एक ही प्लेन में राजीव गाँधी और प्रणब दा बैठे थे. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद एक गुट चाहता था कि राजीव गाँधी ही पीएम बने लेकिन एक गुट प्रणब के पक्ष में था. मगर, राजीव गाँधी ही देश के पीएम बने. प्रणब दा को इसका नुकसान उठाना पडा.

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उन्हें राजीव की सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया. नाराज होकर प्रणब ने ‘राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस’ पार्टी बना लिया. लेकिन 1989 में इन्होने अपने दल का विलय कांग्रेस में करा लिया. उसके बाद प्रणब का दौर लौट आया. मंत्री बने और बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. इतना ही नहीं राष्ट्रपति तक का सफर पूरा किये.

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