चूक…..तो नहीं होता गलवान कांड

15 जून की रात लद्दाख में हुई गलवान कांड ऐसा दर्द दे गया जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती। चीन के साथ इस झड़प में हमारे करीब 20 जवान शहीद हो गए।

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गलवान घाटी
गलवान घाटी

स्वतंत्र पत्रकार दीपक पाण्डेय की रिपोर्ट 

15 जून की रात लद्दाख में हुई गलवान कांड ऐसा दर्द दे गया जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती। चीन के साथ इस झड़प में हमारे करीब 20 जवान शहीद हो गए। भारतीय शूरवीरों ने उसके दो गुने से ज्यादा जवानों को मौत के घाट उतार दिया। रक्षा मामलों के जानकारों के अनुसार इस तरह की गतिरोध को रोका भी जा सकता था। भारतीय सीमा में घुसपैठ करने वाले चीनी सैनिकों को पीछे धकलने के लिए सर्वप्रथम सेना को आई टी बी पी की मदद लेनी चाहिए थी लेकिन सरकारी तंत्र इसको रोकने में असफल रही।

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कॉनफैडरेसन आफ़ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वैलफेयर एसोसिएशन के महासचिव और सेवानिवृत व रक्षा क्षेत्र की जानकारी रखने वाले रणबीर सिंह ने कहा कि यह सबसे लंबे समय तक भारतीय सीमा में चीन के साथ चले झड़प को याद रखा जाएगा । उन्होंने कहा कि जब चीन लदाख में भारतीय सीमा में घुसपैठ किया तब सैन्य स्तर पर बातचीत हुई। निष्कर्ष निकला। मगर, चीनी सेना पीछे नहीं हटी।

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जवाब में पोस्ट पर तैनात भारतीय सेना की टुकड़ी कब्जे वाले पोस्ट पर गए तो चीनी सैनिक उग्र हो गए। तब सेना की बिहार रेजीमेंट ने गजब का साहस दिखाया था। बिहार रेजीमेंट के सैनिकों ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों को यह अहसास करा दिया दिया कि हम किसी भी स्थिति में पीछे हटने वाले नहीं हैं। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि झड़प के दौरान लगभग आधे भारतीय सैनिक शहीद हो गए लेकिन, उन्होंने अंतिम समय तक वीरता से लड़ाई लड़ी।

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रणबीर सिंह ने कहा कि भारत और चीन की सबसे लंबी सीमा लगती है तो ऐसे में सरकार को चाहिए था कि चीन को पीछे धकेलने के लिए सेना से पहले आई टी बी पी की मदद लेनी चाहिए थी। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि आईटीबीपी की स्थापना 1962 में इसी को रखते हुए किया गया है। यह ऐसी अर्धसैनिक है, जो तिब्बत सीमा पर रहकर चीन सेना के हाव – भाव, रहन- सहन, खान-पान व सारी गतिविधियों को पहचानती है। जरूरत पड़ने पर अपने अनुभव को इस्तेमाल कैसे करना है, जिसको यह बखूबी जानती है। जबकि इस मामले में सेना से थोड़ा अंतर है। ऐसे मामले में अगर आई टी बी पी की भी मदद ली जाती तो संभवत आज ऐसा दिन देखने को नहीं मिलता।

उनके मुताबिक सेना को रात के समय गश्त लगाने के लिए भारतीय क्षेत्र में चीनी तम्बू में नहीं भेजना चाहिए था। ऐसे में आई टी बी पी से सुझाव लेकर ही बढ़ना चाहिए था। क्यूंकि ऐसे समय इस समय का दुष्प्रयोग भी किया जा सकता है । आई टी बी पी ऐसे तत्वों को लेकर काफी गंभीर रहती है। इसीलिए भविष्य में ऐसी घटनाओं को लेकर ज्यादा गंभीर रहना होगा ताकि इस तरह की घटनाओं की दुबारा पुनरावृति न हो सके।

बता दें की भारत के लद्दाख में कब्जाए क्षेत्र से चीन अब भी पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहा है। इसको लेकर उच्च स्तर के अधिकारियों के स्तर पर बातचीत चीन से जारी है। अभी तक समाधान नहीं हो काल पाया है।

गलवान घाटी लद्दाख़ और अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक स्थित है। यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। अक्साई चीन पर भारत और चीन दोनों अपना दावा करते हैं। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख़ तक फैली है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार एसडी मुनि बताते हैं कि ये क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख़ की सीमा के साथ लगा हुआ है। यहां से दुश्मन के गतिविधियों पर नजर रखकर अपनी सीमा को और सुरक्षित बनाया जा सकता है।


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