
- ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ यानी मोतियों के माला की तरह चीन भारत को घेरने पर काम कर रहा
- दोनों देशों के बीच इसे लेकर 2018 में $ 1.5 बिलियन के समझौते हुए
पोलटॉक के लिए दीपक पाण्डेय की रिपोर्ट
चीन अब म्यांमार के रास्ते भारत को घेरने की तैयारियों में जुटा है। वह अपने बीआरआई यानी बॉर्डर और रोड के प्रयासों के तहत दबाव बना रहा है अगर ऐसा होता है तो म्यांमार उसके प्रभाव में आ सकता है। ऐसे में यह भारत के लिए खतरा भरा हो सकता है इसलिए चीन के प्रभाव से दूर रखने और और अपने पास लाने के लिए भारत के पास अब भी आखिरी मौका है।
दरअसल, स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स यानी मोतियों के माला की तरह चीन भारत को घेरने पर काम कर रहा है। उसका व्यापार अधिकांश हिन्द महासागर से होते हुए ही मलक्का ऑफ़ स्ट्रीट के जरिये करता है। चीन भारत के कई पड़ोसी देशों में अपने सैन्य और नौसैन्य अड्डे स्थापित कर रहा है, ताकि युद्ध के हालात में चारों ओर से भारत पर हमला कर सके। हालाकि युद्ध की स्थिति में मलक्का ऑफ़ स्ट्रीट के रास्ते भारत का चीन पर पलड़ा भारी है।
चीन के कुल तेल का करीब 80 फीसदी इसी संकरे समुद्री गलियारे से होता है। हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच मुख्य शिपिंग लाइन मलक्का स्ट्रेट है। यह एक संकरा समुद्री गलियारा है, जो 2.8 किलोमीटर चौड़ा है। यहां से हर साल एक लाख शिप गुजरते हैं यानी हर पांच मिनट में एक शिप। इसमें सबसे ज्यादा शिप चीन के हैं। इसी का विकल्प तलाशने के लिए वह पाकिस्तान पर नजरें लगाए है और वहां कई परियोजनाएं विकसित कर रहा है। चीन जहां मलक्का स्ट्रेट का विकल्प तैयार करना चाहता है, वहीं भारत ने अपनी अंडमान और निकोबार कमान को इसके मुहाने पर तैनात किया है। चीन समंदर में कमजोर है। ऐसे में चीन अपना महत्वाकांक्षी योजना बीआरआई पर जोरो शोरो से पूरा करने पर लगा है जो की पाकिस्तान सहित कई देशो से होकर गुजरता है। ऐसे में चीन म्यांमार में भी अपने बीआरआई योजना का विस्तार करना चाह रहा है।
यंगून सिटी योजना बी आर आई का हिस्सा
न्यू यंगून सिटी परियोजना चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (सीऍमइसी ) का एक तत्व है, जो बीआरआई का हिस्सा है। म्यांमार ने जिन योजनाओं पर हस्ताक्षर किए हैं जो चीन को बंगाल की खाड़ी तक पहुंच प्रदान कर सकते हैं। चीन ने म्यांमार के यंगून सिटी के विकास और इसे संवारने के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट किया था जिसे म्यांमार ने खतरा भांपने के बाद अपनी निर्भरता कम करने के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों को भी शामिल कर चीन को झटका दिया है। दोनों देशो के बीच इसे लेकर 2018 में $ 1.5 बिलियन के समझौते हुए।
भारत और म्यांमार का इतिहास
इतिहास की बात करे तो पहले भारत में ही म्यांमार था लेकिन बाद में अंग्रेजो ने म्यांमार को अलग राष्ट्र बना दिया था। भारत को आज़ादी 1947 और म्यांमार को 1948 में आज़ादी मिली। पहले म्यांमार लोकतान्त्रिक देश था मगर 1962 से लेकर 2010 तक यहाँ सैन्य शासन यानी तानाशाह शासन रहा। इसके बाद स्टेट काउंसलर ऑफ म्यांमार आंग सान सू की प्रभाव में आई।
5 बिलियन डॉलर का लोन
आंग सान सू की ने तब देखा की चीन ने म्यांमार को औसतन 5 बिलियन डॉलर का लोन दिया था जिसका ब्याज 500 मिलियन डॉलर होता है। ऐसे में चीन के दबाव के बावजूद फिलहाल म्यांमार इस कदम से पीछे हट गया है लेकिन चीन का दबाव उस पर जारी है जबकि सू की ऐसा नहीं चाहती।
बंदरगाहों तक नजर
चीन नहीं चाहता है की वह स्ट्रीट ऑफ़ मलक्का से घूम कर भारत को घेरे बल्कि म्यांमार के सीतवे और यंगून बंदरगाह के जरिये व्यापार के नाम पर घेरना चाहता है। वह इन बंदरगाहों से युद्ध की स्थिति में भारत के आइलैंड अंडमान और निकोबार पर हमला कर सकता है और दूसरा सीतवे से कोलकाता, विशाखापट्नम और चेन्नई तक अपनी पहुंच बढ़ाना चाह रहा है।
अशांति फैलाने के लिए हथियार दे रहा है चीन
चीन अब आंग सान सू की की सरकार को गिराने के लिए चाल चल रहा है। यहाँ रखाइन प्रान्त, काचिन प्रान्त और शान प्रान्त में विद्रोहियों की आर्थिक रूप से मदद दे रहा है। साथ ही उन्हें हथियार मुहैया कराने के साथ हेलीकाप्टर, एयर मिसाइल भी दे रहा है। वह इनकी मदद से म्यांमार में गृह युद्ध, आतंक और अस्थिर करना चाह रहा है। ऐसे में म्यांमार इनके चंगुल में फस गया तो भारत के लिए बड़ी मुसीबत हो सकती है क्यूंकि म्यांमार एक छोटा देश है। वैसे यहाँ 5 या 6 विद्रोही संगठन है। ऐसे में भारत को समझना चाहिए की जब तक हमारे पडोसी देश स्थिर नहीं रहेंगे तो हम कैसे रहेंगे। भारत को भी इसको देखते हुए आगे आना चाहिए। चीन वैसे अप्रत्यक्ष रूप से यहा की विद्रोही संगठन को खड़ा करने के लिए आर्थिक मदद और हथियार भी देता है जो भारत के नागालैंड, मिजोरम जैसे सटे हुए प्रान्त के विद्रोही को हथियार देता है और आरोप लगने पर वह उल्टा म्यांमार पर आरोप लगाता है।
इसरो और डीआरडीओ पर नजर
चीन की योजना हमला करने के अलावा निगरानी करने की है। उसका नज़र ओड़िसा के चांदीपुर जहां बालासोर से हम अपने मिसाइलो का प्रक्षेपण करते है वह यहाँ से सीधे नज़र रख सकता है। वह सैटेलाइट से नज़र रख सकता है और वह यहाँ से दूरी और मारक क्षमता की गड़ना कर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करना चाहता है साथ ही युद्ध की स्थिति में हमला भी कर सकता है। दूसरी और वह आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में सैटलाइट प्रक्षेपण केंद्र है जहा से सैटलाइट को लांच किया जाता है तो वह यहाँ की स्थिति की गड़ना कर साइबर अटैक या निगरानी कर सकता है।
विद्रोहियों का सफाया जरूरी
भारत को म्यांमार के सीतवे और रंगून बंदरगाह के निर्माण में आगे आना चाहिए। चीन से आर्थिक मदद पाकर भारत और यह अशांति फैलाने वाले विद्रोहियों को जड़ से खत्म करने के लिए यहां अभियान चलाना चाहिए। इसका दूरगामी असर यह होगा की भारत को कई फयदा मिलेगा। इसके आलावा विद्रोही संगठन को आतंकवादी संगठन यहाँ घोषित भी किया जा चुका है जिनका विश्व में कोई विरोध भी नहीं करेगा। अगर यहाँ विद्रोही संगठनो का सफाया करने के लिए म्यांमार की प्रशासक चीन की मदद लेता है तो ऐसे में चीन नहीं चाहेगा जिसे खुद चीन ने फंडिंग किया है तो ऐसे में भारत को इसका फायदा उठाना चाहिए। इससे चीन की सचाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामने लाया जा सकता है। इससे भारत का दबदबा बढ़ेगा। म्यांमार में विकास होगा और यहां स्थिरिता आएगी।
काउंटर कदम उठाना जरूरी
कन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलेट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणवीर सिंह ने कहा कि चीन के बी आर आई योजना को रोके जाने की जरूरत है। यह देश की सुरक्षा के लिए चुनौती है। इसी एसोसिएशन के ट्राइसिटी पंचकूला, मोहाली और चंडीगढ़ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह यादव ने कहा कि यह बड़ी समस्या है। भारत सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिये। इसके लिए काउंटर कदम उठाना चाहिए।