हर तरह की रेसिपी की एक्सपर्ट शीला कुमारी ने चचेरे ससुर धनिक लाल मंडल से सीखी है राजनीति की ‘रेसिपी’

फुलपरास... बाढ़, अकाल, महामारी और अशिक्षा से आज भी जूझ रहा है। आज भी यहां से लाखों लोग पलायन करने को मजबूर हैं। इन विपरीत हालतों के बीच फुलपरास ने कई रत्नों को जन्म दिया है। जननायक कर्पूरी ठाकुर की कर्मस्थली भी यह धरती रही है।

0
1449
Sheela Kumari, Transport Minister, Government
शीला कुमारी , कैबिनेट मंत्री बिहार सरकार.

  • फुलपरास से जदयू ने शिटिंग एमएलए गुलजार देवी का टिकट काट दिया था 
  • शीला कुमारी ने बताया था कि उन्हें चौका संभालने का भी एक लंबा अनुभव है

पोल टॉक के लिए सच्चिदानंद सच्चू की ग्राउंड रिपोर्ट 

फुलपरास… बाढ़, अकाल, महामारी और अशिक्षा से आज भी जूझ रहा है। आज भी यहां से लाखों लोग पलायन करने को मजबूर हैं। इन विपरीत हालतों के बीच फुलपरास ने कई रत्नों को जन्म दिया है। जननायक कर्पूरी ठाकुर की कर्मस्थली भी यह धरती रही है। फुलपरास से ही इस बार शीला कुमारी (sheela kumari ) चुनाव जीतीं और बिहार कैबिनेट में उन्हें जगह दी गयी। फिलहाल वे बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री बनायी गयीं हैं।

BIHAR ELECTION 2020 : साइलेंट वोटरों के सहारे सत्ता के करीब पहुंची एनडीए

दरअसल, फुलपरास में जदयू ने शिटिंग एमएलए गुलजार देवी का टिकट काटकर प्रायश्चित करने का काम किया था। क्षेत्र में गुलजार देवी को लेकर कई तरह की शिकायतें थी। ये शिकायतें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक भी पहुंची लिहाजा गुलजार देवी का टिकट काटकर शीला कुमारी को जदयू से टिकट दिया गया। शीला कुमारी को टिकट देकर जदयू ने अपनी छवि साफ करने की कोशिश की और इस कोशिश में उसे सफलता भी मिली। शीला कुमारी की बदौलत फुलपरास में जदयू की डूबती हुई नैया पार उतर गयी। हालांकि, जब जदयू ने उन्हें टिकट दिया था, तो पार्टी में भी विरोध के स्वर देखने को मिले थे। फुलपरास विस क्षेत्र के पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्योति झा टिकट पाने वालों की चाह में सबसे आगे थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में ज्योति झा निर्दलीय चुनाव लड़े थे।

बिहार विस चुनाव 2020 का सबसे सटीक एग्जिट पोल : महागठबंधन सबपर भारी, पूर्ण बहुमत की सरकार, एनडीए को बड़ा नुकसान

इस चुनाव में उन्हें दस हजार वोट भी हासिल हुआ था। चुनाव के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री की मौजूदगी में जदयू की सदस्यता भी ली थी। सूत्रों का कहना है कि स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें टिकट देने का भरोसा दिया था लेकिन चुनाव के वक्त उनका पत्ता कट गया। टिकट नहीं मिलने से नाराज ज्योति झा ने जदयू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। फिर वे कांग्रेस प्रत्याशी कृपानाथ पाठक के समर्थन में अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये।

जदयू के दूसरे वरिष्ठ नेता संतोष सिंह ने भी पार्टी के इस निर्णय की जमकर मुखालफत की‌। वे खुलकर एलजेपी प्रत्याशी विनोद सिंह के समर्थन में चुनाव प्रचार करते रहे। इन सबके बीच चुनावी पंडित यह अंदाजा लगाते रहे कि शीला कुमारी रेस से बाहर हैं। चुनाव परिणाम में वे तीसरे या चौथे नंबर पर रह सकती हैं।

राजस्थान में ”लव जिहाद’ पर उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने दिया बड़ा बयान, मचा घमासान

अपने सबसे पहले चुनावी इंटरव्यू में शीला कुमारी ने कहा था कि नीतीश के राज में महिलाएं चौका से निकलकर चौक तक पहुंची हैं। लेकिन यह कम ही लोगों को पता होगा कि चौका से निकलकर चौक तक पहुंचने का मैनेजमेंट भी शीला कुमारी अच्छी तरह जानती हैं। वे यह भी जानती थीं कि नीतीश की सबसे बड़ी पूंजी चौका से निकलकर चौक तक पहुंची महिलाएं ही हैं। इसलिए विरोधियों की बातों पर ध्यान न देकर वे चौका से निकलकर चौक तक पहुंचने के कुशल मैनेजमेंट में लगी रहीं। बातचीत के क्रम में शीला कुमारी ने बताया था कि उन्हें चौका संभालने का भी एक लंबा अनुभव है। उन्हें कई तरह की रेसिपी पता है। सो चुनाव में उन्होंने ऐसी रेसिपी तैयार की कि सारे राजनीतिक पंडितों के गणित पर पानी फिर गया।

चुनाव के दौरान विरोधी यह बात करते रहे कि चौका संभालने वाली महिला भला उनको क्या टक्कर दे पायेगी। लेकिन यह आकलन करने के दौरान वे भूल गये कि शीला कुमारी इस क्षेत्र के प्रसिद्ध समाजवादी नेता धनिक लाल मंडल के इंजीनियर भतीजे शैलेन्द्र कुमार की धर्मपत्नी हैं। अति पिछड़ा होने के बावजूद वे पढ़ी – लिखी एक सुसंस्कृत महिला हैं। एक मिथिलानी विदूषी के अंदर जितने भी गुण होते हैं, वे सारे गुण उनमें विद्यमान हैं‌। बचपन से ही उनके अंदर सीखने के गुण मौजूद हैं, सो शादी के बाद उन्हें चचेरे ससुर धनिक लाल मंडल से राजनीति सीखने का भी मौका मिला। समाजवाद के संबंध में भी उन्हें ससुर धनिक लाल मंडल से ही काफी कुछ जानकारी मिली।

इन्हीं सब जानकारियों की बदौलत उन्होंने कुछ कविताओं की रेसिपी तैयार की। यह रेसिपी ‘कांटों का चमन’ नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई और प्रशंसित हुई। कविताओं के लिए उन्हें हिंदी का प्रतिष्ठित सावित्री बाई फुले सम्मान भी दिया जा चुका है। वे इन्हीं विचारों के सहारे अपनी मातृभाषा मैथिली में गीत की रेसिपी तैयार करती हैं। वे बताती हैं कि उन्होंने मातृभाषा मैथिली में कई गीतों की रचना की है। और इन्हीं विचारों के सहारे उन्होंने फुलपरास में राजनीति की ऐसी रेसिपी बनायी कि विरोधी देखते रह गये और चुनाव पंडितों के गणित पर पानी फिर गया।

कौन थे धनिक लाल मंडल

धनिक लाल मंडल बिहार के समाजवादी नेताओं में से एक थे। वे फुलपरास विधानसभा से 1967 से 1974 तक विधायक रहे। 1967 से 1969 तक बिहार विधानसभा के स्पीकर रहे। वे 1977 में झंझारपुर लोकसभा से सांसद भी चुने गये। वे केंद्र में मोरारजी देसाई के मंत्रीमंडल में भी रहे। उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया था। इसके साथ ही वे 1990 से लेकर 1995 तक हरियाणा के राज्यपाल भी रहे। मिथिलांचल की राजनीति में उन्हें एक कद्दावर समाजवादी नेता के रूप में जाना जाता है।

आरजेडी से विधायक बने जेठ भरत भूषण मंडल

भरत भूषण मंडल धनिक लाल मंडल के बेटे हैं। वे शीला कुमारी के पति शैलेन्द्र कुमार के बड़े भाई लगते हैं। भरत मंडल ने इस बार आरजेडी के टिकट पर फुलपरास का पड़ोसी विस क्षेत्र लौकहा से चुनाव लड़ा और जदयू के शिटिंग एमएलए लक्ष्मेश्वर राय को पटखनी दी। जेठ और भावज दोनों विरोधी दल के नेता हैं लेकिन दिलचस्प यह है कि दोनों यही बात बताते हैं कि उन्होंने राजनीति धनिक लाल मंडल से सीखी है।

शीला कुमारी के सामने हैं कई चुनौतियां

हर तरह की रेसिपी बनाने में माहिर शीला कुमारी को नीतीश मंत्रीमंडल में परिवहन मंत्रालय सौंपा गया है। इन 15 वर्षों में बिहार में सड़क और बिजली की हालत जरूर सुधरी लेकिन परिवहन मंत्रालय की हालत जस की यह है। स्टेट ट्रांसपोर्ट की हालत बेहद खराब है। वेतन नहीं मिलने के कारण चालकों के समक्ष भुखमरी की स्थिति है। स्टेट ट्रांसपोर्ट की करोड़ों रुपये की संपत्ति को कबाड़ खा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बदहाल परिवहन मंत्रालय को पटरी पर लाने के लिए शीला कुमारी कौन सी रेसिपी बनाती हैं।


Leave a Reply